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Sunday, December 22, 2024
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गांधी को रैदास के बेगमपुरा की जगह तुलसी का रामराज्य क्यों पसंद था?

सिद्धार्थ रामू, पत्रकार & सोशल एक्टिविस्ट

आदर्श समाज कैसा होना चाहिए इस बारे में गौतम बुद्ध, कबीर, फुले, डॉ. आंबेडकर और पेरियार ने भी अपने विचार प्रकट किए, लेकिन गांधी को इनमें कोई भी आदर्श राज्य पंसद नहीं आया। उन्होंने रामराज्य पसंद किया है। इसकी स्पष्ट वजह यह है कि बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले, डॉ. आंबेडकर और पेरियार ने आदर्श राज्य का जो खाका प्रस्तुत किया है, उसमें ब्राह्मणवाद के विनाश का स्वप्न है, जिसमें वर्ण व्यवस्था और ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के लिए कोई जगह नहीं है। यह पूरी तरह समता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित है। (Why did Gandhi like Tulsi’s Ramrajya)
इसके उलट रामराज्य वर्ण-व्यवस्था पर आधारित था और इसमें ब्राह्मणों की श्रेष्ठता सबको स्वीकार करनी थी। वर्ण-व्यवस्था और ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के संबंध में गांधी की राय इस प्रकार थी-
गांधी की नजर में ब्राह्मण हिंदू धर्म और मानवता के सबसे खूबसूरत फूल हैं। गांधी ने ब्राह्मणों को हिंदू (ब्राह्मण) धर्म और मानवता का सबसे खूबसूरत फूल कहा है और गैर-ब्राह्मणों पर यह आरोप लगाया है कि वे इस खूबसूरत फूल को इसकी खूशबू और चमक के साथ रौदना चाहते हैं। लेकिन गैर-ब्राह्मण इसमें कभी सफल नहीं होगें। (Why did Gandhi like Tulsi’s Ramrajya)
गांधी ने कहा “वर्णाश्रण धर्म अभिशाप नहीं है, बल्कि यह उन बुनियादों में से एक है, जिन पर हिंदू (ब्राह्मण) धर्म टिका हुआ है और यह (वर्णाश्रम धर्म) बताता है कि धरती जन्म लेने का इंसान का उद्देश्य क्या है। वे आगे कहते हैं कि “ब्राह्मण हिंदू धर्म और मानवता के सबसे खूबसूरत फूल हैं। वे आगे अपनी बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि “मुझे इनके ( ब्राह्मण के लिए) कुछ करने की जरूरत नहीं है। ये अपनी हिफाजत खुद ही अच्छी तरह कर सकते हैं। ये पहले भी बहुत सारे तूफानों का सामना कर चुके हैं। मुझे गैर-ब्राह्मणों से सिर्फ इतना कहना है कि वे इन फूलों (ब्राह्मणों) को उनकी उनकी खुशबू और चमक के साथ रौंद देने की कोशिश कर रहे हैं….” (भीकु पारेख, कोलेनिज्म, ट्रेडिशन एंड रिफार्म : एनालिसि ऑफ गांधी पोलिटकल डिसकोर्स, सेज पब्लिकेशन, 1989, पृ. 207-46)
तुलसी का रामराज्य भी पूरी तरह वर्ण-व्यवस्था पर आधारित है। उन्होंने लिखा है कि-
वर्णाश्रम निज निज धरम निरत वेद पथ लोग।
चलहिं सदा पावहिं सुखद नहिं भय शोक न रोग।

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