गुमला डीसी आईएएस अधिकारी सुशांत गौरव पीएम अवार्ड से सम्मानित होंगे। तीन दिन बाद 21 अप्रैल को दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिविल सर्विस डे पर विज्ञान भवन नई दिल्ली में उन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करेंगे। लेकिन क्या आइएएस सुशांत गौरव इस सम्मान के हकदार हैं? यह सवाल पहाड़ों में मौजूद विलुप्तप्राय जनजाति असुरों की हालत से उठ रहा है। (PM Modi feeling proud)
इसी जिले में छाता सराय में आदिम जनजाति असुर रहते हैं। जिस हाल में असुर जनजाति के लोग रह रहे हैं उनकी स्थिति को देखकर कलेजा कांप जाता है। छाता सराय और उसके आसपास हजारों साल से असुर पहाड़ की ऊंची चोटी पर रहते हैं। हालांकि, पहाड़ की ऊंची चोटी पर समतल भूभाग है। लेकिन न वहां बिजली है, न पानी की व्यवस्था और न ही स्कूल-अस्पताल। (PM Modi feeling proud)
असुर आदिवासी हजारों साल से वे प्रकृति से तालमेल बैठाकर जीवन यापन कर रहे हैं। उनके इलाके में बॉक्साइट मिला तो कंपनी यहां पहाड़ों का सीना छलनी कर और जमीन को खोदकर बॉक्साइट धड़ल्ले से निकाल रही है। कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत बॉक्साइट माइनिंग करने वाली कंपनी को वहां बहुत बंदोबस्त करने चाहिए थे, लेकिन कुछ नहीं किया, क्योंकि कोई पूछने वाला ही नहीं है। अंतहीन अन्याय की बदरंग तस्वीर है यह इलाका।
वैक्सीन की दो बूंद जिंदगी की खुराक तो बहुत दूर की बात है, दो बूंद पानी न मिलने से कई बच्चे दम तोड़ चुके हैं। पानी को अनमोल मानकर ही शायद कुछ लोगों ने अपने बीच कुछ का नाम पानी असुर भी रखा है। छाता सराय में 76 साल की बुजुर्ग महिला का नाम पानी असुर है। उन्हें खुद 3 किलोमीटर दूर जाकर असुरों के खोदे कुएं से पानी लाना होता है। (PM Modi feeling proud)
बिजली तो ख्वाब में भी नहीं आती, जब लालटेन तक नहीं है। लालटेन इसलिए नहीं है, क्योंकि केरोसिन नहीं है, कहीं से केरोसिन लाने को पैसे भी नहीं हैं। रात का अंधेरा दूर करने को मशाल जलाई जाती है यहां। यहां से 40 किलोमीटर दूर स्वास्थ्य केंद्र है। बीमार को चारपाई पर लिटाकर वहां ले जाना होता है, यही उनकी एंबुलेंस है इमरजेंसी में।
प्रसव वेदना में कितनी ही महिलाएं सांसें खो चुकी हैं इलाज न मिलने से। खाने की थाली ? हर निवाला जख्म है, जिस मौजूदा व्यवस्था नमक छिड़कती नजर आती है। जैसे यह हिस्सा देश में है ही नहीं, यहां सरकार और सरकारी योजना नाम की चीज ही नहीं है। बॉक्साइट के लिए कंपनियों के डंपर नहीं रौंदते इस इलाके को तो शायद पहुंचने का रास्ता भी नहीं होता। इन रास्तों पर भी इन असुर आदिवासियों का हक कहां है। (PM Modi feeling proud)
भारत सरकार के अनुसूचित जनजाति विभाग ने आदिम जनजातियों के कल्याण के लिए करोड़ों रुपए आवंटित किए। वे पैसे कहां गुम हो गए पता नहीं चला? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2022-2023 के बजट में जनजातीय कार्य मंत्रालय के लिए 8451.92 करोड़ रुपये निश्चित किए हैं, जो कि वित्त वर्ष 2021-2022 के पिछले बजट 7524.87 करोड़ से ज्यादा है। (PM Modi feeling proud)
जनजातीय कार्य मंत्रालय के लिए कुल बजट में 12.32 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। 19 जनवरी 2022 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के अनुमोदन से जनजातीय कार्य मंत्रालय की 14 योजनाओं के तहत हजारों करोड़ की मंजूरी अलग से है।