छात्र राजनीति का महत्व समाज और देश के विकास में अहम है क्योंकि यह छात्रों को भविष्य के लिए जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनाने का काम करती है। छात्र राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके जरिए छात्र विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अपनी आवाज उठाते हैं और विभिन्न मुद्दों पर अपना रुख रखते हैं।
भारत में छात्र राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने वाले कई नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह एक मंच है जहाँ छात्र राजनीति का पाठ सीखते है। छात्र राजनीति ने कई बड़े नेता इस देश को दिए है। छात्र नेताओं ने हर मुद्दे पर हमेशा प्रतिरोध दर्ज किया हैं। छात्र राजनीति सामाजिक बदलावों का हिस्सा बनने के लिए भी छात्रों को प्रेरित करती रही है। खासकर भारत के संदर्भ में, कैम्पस की राजनीति ने कई महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों की नींव रखी है। (Why is student politics important)
छात्र राजनीति के जरिए लोग विधानसभा, संसद तक पहुंचे हैं। राजनीति सिर्फ़ राजनेताओं या राजनीतिक दलों के लिए नहीं है, बल्कि हर नागरिक के लिए है, जिस पर इसका असर पड़ता है। यह लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है।और आज सत्ता में बैठे बहुत से लोग इस विचार का उल्लंघन करते हैं कि छात्रों को केवल अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और राजनीतिक गतिविधियों से विचलित नहीं होना चाहिए। लेकिन इन आलोचकों से जो सवाल पूछा जाना चाहिए वह यह है कि शिक्षा को केवल कक्षा के अंदर किताबों से जो पढ़ाया जाता है, उसी तक सीमित क्यों माना जाना चाहिए।
भगत सिंह और छात्र राजनीति
भगत सिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में लिया जाता है। उनकी विचारधारा और उनके कार्य आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। भगत सिंह का मानना था कि युवा और छात्र समाज में बदलाव लाने की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति होते हैं। उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही राजनीति में भाग लेना शुरू किया और भारतीय समाज की बेहतरी के लिए संघर्ष किया। (Why is student politics important)
भगत सिंह का मानना था कि छात्रों को केवल शिक्षा प्राप्त करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेदारियों को भी समझना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन में “इंकलाब” का नारा दिया और समाज के अन्याय और शोषण के खिलाफ युवाओं को जागरूक करने का प्रयास किया। हर साल 28 सितंबर को भगत सिंह की जयंती पर देश भर में उन्हें याद किया जाता है, लेकिन क्या वास्तव में आज के युवाओं ने उनके विचारों को अपने जीवन में उतारा है?
लोकतंत्र की समझ
छात्र राजनीति छात्रों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को समझने का मौका देती है। जब वे छात्र संघ चुनाव में वोट देते हैं या चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें लोकतंत्र की असली ताकत का अनुभव होता है। इससे उन्हें समझ आता है कि कैसे हर नागरिक की भागीदारी से एक समाज और देश को बेहतर बनाया जा सकता है।
2.सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता
छात्र राजनीति छात्रों को समाज और राजनीति से जुड़े मुद्दों के बारे में जागरूक करती है। उदाहरण के रूप में, अगर किसी विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोतरी हो जाती है और छात्रों के पास इसे चुकाने की क्षमता नहीं है, तो छात्र राजनीति के माध्यम से वे इस मुद्दे पर आवाज उठा सकते हैं। इससे छात्रों में सामाजिक और राजनीतिक समझ बढ़ती है और वे अन्याय के खिलाफ खड़े होना सीखते हैं।
3.अपने अधिकारों के लिए लड़ना
छात्र राजनीति छात्रों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देती है। जैसे अगर किसी कॉलेज में छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, तो छात्र राजनीति के जरिए छात्र प्रशासन से इसे ठीक कराने की मांग कर सकते हैं। इससे छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है कि वे अपने हक अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं।
उदाहरण: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) जैसे विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति का एक मजबूत इतिहास रहा है। जब 2016 में छात्रों ने फीस बढ़ोतरी और प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया, तो उनकी राजनीति में सक्रिय भागीदारी ने देशभर में चर्चा को जन्म दिया। इससे छात्रों की समस्या का समाधान निकला और उनकी आवाज सुनी गई। यह बताता है कि छात्र राजनीति छात्रों को अपनी समस्याओं के प्रति आवाज उठाने और उनका हल निकालने का मंच देती है। (Why is student politics important)
सीताराम येचुरी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से छात्र राजनीति में हिस्सा लिया और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रमुख नेता बने। उन्होंने हमेशा वामपंथी विचारधारा का समर्थन किया और संसद में भी इसका प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व का एक सकारात्मक पक्ष यह है कि वे लगातार सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर अपनी पार्टी की नीतियों को आगे बढ़ाते रहे हैं।
निष्कर्ष: छात्र राजनीति जरूरी है क्योंकि यह छात्रों को न केवल अपने हक के लिए लड़ना सिखाती है। महात्मा गांधी ने 1919 में सत्याग्रह, 1931 में सविनय अवज्ञा और 1942 में जब अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात की तो उनके पास विद्यार्थियों के लिए हमेशा एक राजनीतिक संदेश था। गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, इलाहाबाद और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे शिक्षा केंद्र विद्यार्थी आंदोलनों की उपज थे। गांधी के अनुयायियों ने आजाद भारत में विद्यार्थी आंदोलनों पर भरोसा किया। जयप्रकाश नारायण का आंदोलन इसकी मिसाल है। उसे रोका नहीं जाना चाहिए और रोका भी नहीं जा सकता है। राजनीतिक चिंतकों का यह मानना रहा है कि लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा एक अनिवार्य शर्त है। यदि उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी यह तय नहीं कर सकता कि उसका सही प्रतिनिधि कौन होगा तो उससे यह उम्मीद कैसे की जाए कि वह एक अच्छा नागरिक बन पाएगा और समाज में न्याय, समता और आधुनिक मूल्यों के पक्ष में खड़ा हो पाएगा। समाज में यह बात भी फैलाई जाती है कि छात्र-छात्राओं को राजनीति नहीं करनी चाहिए, मज़दूर आंदोलन, किसान आंदोलनों के समय भी यही समझाया जाता है कि मज़दूरों और किसानों को राजनीति नहीं करनी चाहिए। आम धारणा बना दी गई है कि शरीफ लोगों को राजनीति नहीं करनी चाहिए। फिर सवाल यह उठता है कि राजनीति किसको करनी चाहिए?